२६ दिसंबर १९११ के दिन कोंग्रेसके २७वें अधिवेशन के पहले दिन मंच से 'वंदे मातरम्'गीत से अधिवेशन का प्रारंभ हुआ। उसके बाद पहलीबार 'जन गण मन' का पठन भारतीय जनता के सामने हुआ। ये तो सर्वविदित बात है कि श्री रविन्द्रनाथ टागोरने इसकी रचना कि है। इसका इंग्लीश ट्रान्सलेशन भी उनकी कलमसे ही हुआ है।
मेरे जैसी नई पीढीको शायद यह ज्ञात नही होता कि हम जो सामन्यताः स्कूलों, कॉलेजो एवं समारंभों तथा राष्ट्रीय त्योहारों पे जो गायन एवं पठन करते है वो सिर्फ गीत का एक अंश ही है। पूर्ण गीत यहां प्रस्तुत कर रहा हुं शायद थोडा और नजदीक आ जाये हम भारतके।
श्री सुभाषचंद्र बोझ ने आझादी से पहले ही 'आझाद हिन्द फौज'के लिये 'जन गण मन'को राष्ट्रगान के रूपसे प्रस्थापित किया था। 'आझाद हिंद कैबिनेट'के प्रधान आनंद मोहन सहाय ने 'जन गन मन'का पहलीबार हीन्दी रूपातंरण करवाया था जो 'हिन्दी कौमी तराना'के रूप से जाना जाता है। यह बात कि नोंध 'द नेशन' अखबार के मार्च-१०,१९४९ के अंक में ली गई थी।
बंधुवर श्री उर्वीश कोठारी(महेमदावाद-गुजरात)ने 'आझाद हिन्द फौज' के 'रानी लक्ष्मीबाई' रेजिमेन्टके लेफ्टेनन्ट कर्नल श्री. लक्ष्मी सहगलसे सुना हुआ वह गीत भी यहां प्रस्तुत कर रहा हुं। 'हीन्दी कौमी तराना' आज लगभग भुला दिया गया है।
ये सभी इन्फर्मेशन गुजराती मेगॅजीन 'सफारी' के अंक-१२७ एवं १२८में दिया गया था। 'सफारी'को धन्यवाद एवं आभार...
'जन गण मन' हमारा राष्ट्रगान(National Anthem)है।
'वंदे मातरम्' हमारा राष्ट्रीय गीत(National Song)है।
'सारे जहांसे अच्छा' भारतीय फौज का कूचगीत या फौजीगीत(Martial Song)है।
जय हिन्द।
जन गण मन- भारतीय राष्ट्रगान(पूर्ण)
॥१॥
जन-गण-मन- अधिनायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
पंजाब-सिन्धु-गुजरात-मराठा-
द्राविधू-उत्कल-बङ्ग
विन्ध्य-हिमाचल-यमुना-गङ्ग
उच्छल-जलधि-तरङ्ग
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशीष मांगे,
गाहे तव जय-गाथा
जन-गण-मन-मङ्गलदायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे॥
॥२॥
अहरह तव आह्वान प्रचारित,
शुनि तव उदार वाणी-
हिन्दु-बौद्ध-शिख-जैन-पारसिक-
मुसलमान-खृष्टानि।
पूरब-पश्चिम आसे
तव सिंहासनपाशे
प्रेमहार, हय गाथा,
जन-गण-ऐक्य-विधायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे॥
॥३॥
पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पन्था,
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथि, तव रथ-चक्रे
मुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
सङ्कट-दुःख-श्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय है,
भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे॥
॥४॥
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथ
पीड़ीत मूर्छित-देशे
जाग़्रत दिल तव अविचल मङ्गल
नत-नयने अनिमेष
दुःस्वप्ने आतङ्के
रक्षा करिजे अङ्के
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुःखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे॥
॥५॥
रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि
पूरब-उदय-गिरि-भाले,
साहे विहङ्गम, पूण्य समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरण नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे॥
हीन्दी कौमी तराना
शुभ सुख चैनकी बरखा, भारत भाग है जागा,
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड, उत्कल, बंग,
चंचल सागर, विंध्य, हिमाळा, नीला जमुना, गंगा,
तेरे नीत गुण गायें,
तुजसे जीवन पाये,
सब तन पाये आशा,
सूरज बनकर जग पर चमके भारत नाम सुभागा,
जय हो, जय हो, जय हो...जय जय जय जय हो,
भारत नाम सुभागा॥
सबके दिलमें प्रीत बसाये तेरी मीठी बानी,
हर सुबेके रहनेवाले, हर मझहबके प्रानी,
सब भेद और फर्क मिटाके,
सब गोदमें तेरी आ के,
गूंथे प्रेमकी माळा,
सूरज बनकर जग पर चमके भारत नाम सुभागा,
जय हो, जय हो, जय हो...जय जय जय जय हो,
भारत नाम सुभागा॥
सुबह सवेरे पंखपंखेरु तेरे ही गुण गायें,
रसभरी भरपूर हवायें, जीवनमें सत् लायें,
सब मिलकर हिंद पुकारे,
जय आझाद हिंद के नारे,
प्यारा देश हमारा
सूरज बनकर जग पर चमके भारत नाम सुभागा,
जय हो, जय हो, जय हो...जय जय जय जय हो,
भारत नाम सुभागा॥
आजाद हिन्द फौज ने अगर जन गण मन को अपना राष्ट्रगान बनाया था, तो यह कहना कि टैगोर ने यह गीत बरतानिया के राजा को सम्बोधित कर रचा था, बेमानी हो जाता है।
જવાબ આપોકાઢી નાખોઆ ટિપ્પણી લેખક દ્વારા દૂર કરવામાં આવી છે.
જવાબ આપોકાઢી નાખોGyaanduttसाहब, इसमें रविन्द्रनाथजी ही कारणभूत है। जिस दिन पहलीबार पठन हुआ उसके दुसरे दिन आज कि प्रणालीमें ही अंग्रेजी अखबार'द इंग्लीश्मेन'ने उसे राजा का स्वागत गीत बताया वहीं 'द बेंगाली' अखबारने उसे देशभक्ति का गीत करार दिया, ये बात रविन्द्रनाथजी जानते हुये भी कुछ ना बोले आखिरकार उन्होने १९३९में एक निवेदनमें स्पष्टता कि 'भारत भाग्य विधाता' उपरवाले सबके विधाता परम परमेश्वर के भाव से ही कहा गया है। १९११ से लेकर १९३९ तक कि उनकी चुपकीदी ही विवाद के लिये ज्यादा कारणभुत रही
જવાબ આપોકાઢી નાખોआखरी पंक्ति के इग्लीश रूपांतरण भी कारणभूत है इस बात के लिये..
જવાબ આપોકાઢી નાખોTHE night dawns, the sun rises in the East,
the birds sing, the morning breeze
brings a stir of new life.
Touched by the golden rays
of thy love
India wakes up and
bends her head at thy feet.
Thou king of all kings,
Thou Dispenser of India's destiny,
Victory, Victory, Victory to thee..
इस पंक्ति में King of all kings कि वझह से सारी बेतुकि बातोंने जन्म लिया..शब्द संयमी होता है, भावना उसे विस्तृत करती है। यहां पठन करने वाला किस भावनासे शब्द को लेता है उसी परिप्रेक्ष्यमें उसे शब्दार्थ मिलेगा।
mari jaankari che ke george IV a aa geet thi khubj prabhaveet thaya hata aney bolya hata ke atli badhi prasansa tuh mari mara desh ma pan nathi thayee .[in other words apne tuh khusamatkhori ki haad kar di]
જવાબ આપોકાઢી નાખો@nimeshchandra ji यहां किन परिस्थितियोमें यह गीत लिखा गया और जब टागोरजीने निवेदनमें 'भारत भाग्य विधाता' के बारे में स्पष्टता कि वह परिस्थिति काफी अलगथी सो ये विवाद वहीं जन्म लेता है। पर मेरी उपरोक्त कमेन्ट में मैने बताया वैसे ही शब्दार्थ पठन करने वाले कि भावना से उत्पन्न होता है। हमारा राष्ट्रगान आज के परिप्रेक्ष्यमें लिया जाये तो ना मुजे उसमें कोइ राजा की प्रशस्ति लगती है ना उसका स्वागत..
જવાબ આપોકાઢી નાખોमैं रवीन्द्रनाथ ठाकुर के मौन को देश भक्ति के पक्ष में लेता हूं।
જવાબ આપોકાઢી નાખોउनकी जगह मैं होता तो भी शायद ऐसा ही व्यवहार करता। विवाद और द्वन्द्व के पचड़े में हम ब्लॉगर लोग पड़ते हैं। महान कवि नहीं!